प्रयाग में सम्राट अशोक ने सौ फ़ीट ऊंचा विशाल स्तूप बनवाया था. इसके पास ही एक और भव्य स्तूप था जिसमें भगवान बुद्ध के केश और नख सुरक्षित रखे गए थे. यहाँ बुद्ध चंक्रमण यानी चलित ध्यान करते थे जिसके अवशेष मौजूद थे. और इसके पास ही हज़ारों भिक्षुओं के विश्राम के लिए विशाल संघाराम विहार बना हुआ. लेकिन आज उनका नामो निशान तक नहीं है.
इस अभागे भारत देश ने इतिहास की उस गौरवशाली विरासत को खुद ही मिटाया और बुद्ध की वाणी से सदियों तक वंचित रहा.
जबकि बुद्ध के ‘केश’ का एक विशाल स्तूप श्वेडागोन पगौड़ा आज 2600 साल बाद भी रंगून में ज्यों का त्यों सुरक्षित हैं. श्रीलंका के कैंडी शहर में भगवान बुद्ध का ‘दांत’ का भव्य विहार आज भी सुरक्षित हैं और यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज में शुमार है.
पूरे विश्व में बुद्ध के प्रेम, करूणा और मैत्री की वाणी का सूरज चमका लेकिन भारत में एक साज़िश के तहत अस्त हो गया.
लेकिन द्वितीय बुद्ध शासन में बुद्ध की वाणी का सूरज फिर से चमक उठा है दुनियां वैज्ञानिक और मानव कल्याणकारी बुद्ध के धम्म के मार्ग पर उमड़ पड़ी हैं.
सबका मंगल हो…सभी प्राणी सुखी हो
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